सेहत को नुकसान पहुंचाने वाले 12 बैक्टीरिया और फंगस को पहचानना हुआ मुमकिन
सेहतराग टीम
लखनऊ के केजीएमयू ने मरीजों की जान ले रहे खतरनाक बैक्टीरिया और फंगस को पहचानने में कामयाबी हासिल की है। माइक्रो बायोलाजी विभाग ने मरीजों की सेहत बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार 12 बैक्टीरिया व वायरस की पहचान माल्डी-टॉफ एमएस मशीन के जरिये की है।
इस जानकारी का लाभ न सिर्फ केजीएमयू बल्कि देश के अन्य अस्पतालों को भी मिलेगा। केजीएमयू के डॉक्टर वेब कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए विदेश के बड़े विशेषज्ञों से जुड़े हुए हैं। समय-समय पर सूचनाओं का भी लेनदेन होता है। इससे पहले तक कुछ ही खतरनाक बैक्टीरिया व वॉयरस की पहचान केजीएमयू में हो पाती थी।
मरीजों की जान बचाना होगा आसान : केजीएमयू मेडिसिन विभाग के डॉ. डी हिमांशु के मुताबिक स्ट्रेप्टो कॉकस-ए गैल्कटी व स्ट्रेप्टोकॉकस पायोजीन अस्पताल के बाहर से आता है। बाकी बैक्टीरिया व फंगस भर्ती मरीजों को होने की संभावना होती है। उन्होंने बताया कि समय पर बैक्टीरिया व फंगस की पहचान से मरीज की जान बचाना आसान हो जाता है, क्योंकि बिना बैक्टीरिया व फंगस की पहचान सही एंटीबायोटिक दवा के चयन में अड़चन आती है।
कई तरह के एंटीबायोटिक दवा का इस्तेमाल मरीज की सेहत के लिए घातक है। एक समय के बाद एंटीबायोटिक मरीज पर काम नहीं करती है। एंटीबायोटिक दवाएं सीमित हैं। लिहाजा इन्हें बचाकर रखने में कामयाबी मिलेगी।
इन मरीजों में खतरा अधिक: आईसीयू व वेंटिलेटर पर भर्ती मरीजों में रोगों से लड़ने की ताकत पहले से कम होती है। ऐसे में बैक्टीरिया व फंगस आसानी से उन्हें अपनी चपेट में ले लेते हैं।
146 मरीजों की जांच-
माल्डी-टॉफ एमएस मशीन से कई तरह के घातक बैक्टीरिया और फंगस की पहचान आसान हो गई है। अब तक केजीएमयू में भर्ती 146 मरीजों की जांच इस मशीन से की गई।
30 से अधिक अस्पतालों में मशीन उपलब्ध-
दिल्ली एम्स, पीजीआई लखनऊ समेत देश के 30 से अधिक बड़े अस्पतालों में माल्डी-टॉफ एमएस मशीन उपलब्ध है लेकिन इन बैक्टीरिया और फंगस को पहली बार वृहद स्तर पर पहचाने का काम केजीएमयू ने किया है।
केजीएमयू में इन बैक्टीरिया व फंगस की पहचान-
एलीजाबेथकिंगी एनाफीलिज: इस बैक्टीरिया से नवजात निमोनिया की जद में आ रहे हैं। दिमागी बुखार का कारण भी यह बैक्टीरिया है।
स्ट्रेप्टो कॉकस-ए गैल्कटी: यह बैक्टीरिया मां से जन्म लेने वाले शिशु को होता है। इसकी चपेट में शिशु को दिमागी बुखार हो जाता है।
स्ट्रेप्टोकॉकस पायोजीन: यह एक प्रकार का खतरनाक फंगस है, जो त्वचा को नुकसान पहुंचाता है। समय पर पहचान न होने से मरीज के हाथ-पैर में सड़न पैदा हो जाती है। मरीज का पूरा शरीर संक्रमण की जद में आ जाता है। मरीज की जान तक जा सकती है।
कैंडिडा यूटिलिस: खुले घाव से यह फंगस फैलता है, जो खून में जाकर संक्रमण पैदा करता है। समय पर सटीक एंटीफंगल दवा न मिलने से जान जोखिम में पड़ सकती है।
सियूडोमोनास स्टूडजेरी: आईसीयू पर भर्ती मरीजों को यह बैक्टीरिया संक्रमण फैलाता है। यह बैक्टीरिया घाव के माध्यम से शरीर में दाखिल होता है।
(साभार- हिन्दुस्तान)
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